कामाख्या माता का यह प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर असम के गुवाहाटी शहर में नीलांचल पर्वत पर स्थित है, जो प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। इसे महाशक्तिपीठ भी कहा जाता है। मंदिर के सामने ब्रह्मपुत्र नदी बहती है। मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती का गर्भ गिरा था, जो इस ब्रह्मांड की सृजनशक्ति का प्रतीक है।
माता कामाख्या को इच्छा की देवी अर्थात Goddess Of Desires भी कहा जाता है। यह मंदिर नारी शक्ति का प्रतीक है। कालिका पुराण के अनुसार, माता कामाख्या के इस पवित्र मंदिर में जो भी व्यक्ति अपनी सच्ची भावना से प्रार्थना करता है, माता उसकी सभी इच्छाएं अवश्य पूरी करती हैं।
माता कामाख्या से जुड़ी पौराणिक कथा
श्री महाशिवपुराण के अनुसार, माना जाता है कि माता कामाख्या माता सती के स्वरूप को दर्शाती हैं।
माता सती के पिता प्रजापति दक्ष सती एवं भगवान शिव विवाह से अत्यंत क्रोधित थे। दक्ष एक भव्य यज्ञ का आयोजन करते हैं जिसमें वह माता सती एवं भगवान शिव को आमंत्रित नहीं करते। माता सती बिना आमंत्रण यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए अपने पिता के घर पहुंच जाती हैं। प्रजापति दक्ष अपनी पुत्री के बिना आमंत्रण यज्ञ में सम्मिलित होने पर उनका एवं भगवान शिव का तिरस्कार करते हैं। अपने पति के अपमान से क्रोधित होकर, माता सती हवन कुंड में आत्मदाह कर लेती हैं। इसके बाद, भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो जाते हैं और माता सती के शव के साथ कैलाश में विचरण करने लगते हैं। भगवान विष्णु, शिव को रोकने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े कर देते हैं जो 51 शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाते हैं।
माता सती के शरीर का गर्भ अर्थात योनि भाग नीलांचल की पहाड़ियों पर गिरा। जिसे आज भी हम कामाख्या देवी के स्वरूप में पूजते हैं। माता कामाख्या शक्तिपीठ को महाशक्ति पीठ अर्थात सर्व शक्तिशाली पीठ भी कहा जाता है।
कामाख्या मंदिर का इतिहास
कामाख्या मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में हुआ था। इस मंदिर को निर्माण करने के कुछ समय बाद, मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इसे ध्वस्त कर दिया। 1498 में, हुसैन शाह ने मंदिर को खंडहर में बदल दिया। उसके बाद, विश्व सिंह, बिहार के कोच वंश के संस्थापक, ने 1565 में मंदिर का पूर्ण जीर्णोद्धार किया।
स्थापत्य कला एवं संरचना
कामाख्या मंदिर को सुंदर निम्न बंगाल इस्लामी वास्तुकला में निर्मित किया गया है। मुख्य मंदिर के सामने श्री गणेश और 12 स्तम्भों के मध्य में हरी गौरी मूर्ति स्थित है। मंदिर के उत्तर में कामेश्वर महादेव, बृजभान, और पंच बक्त हैं। मंदिर के दक्षिण में देवी कामेश्वरी और देवी सिंह वाहिनी का स्थान है। मंदिर प्रांगण में सौभाग्य कुंड है, जिसमें श्रद्धालु स्नान करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस जल की एक बूंद से ही व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं।
अम्बुबाची मेला क्या है?
अम्बुबाची मेला को तांत्रिक प्रजनन और अमेठी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि माता के वार्षिक महवरी के दौरान यह मंदिर चार दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है। पट बंद करने से पूर्व माता के गर्भ को एक सफेद वस्त्र से ढक दिया जाता है जो की पट खोलने के बाद लाल रंग का प्राप्त होता है। इस वस्त्र को अंबुबाची वस्त्र कहा जाता है जो की अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसे ही भक्तों में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इस दौरान सभी धार्मिक अनुष्ठान स्थगित कर दिए जाते हैं। यह प्रतिवर्ष 22 जून से 26 जून तक आयोजित किया जाता है।
माता का यह पवित्र मंदिर भक्तों के लिए वर्ष भर खुला रहता है परंतु नवरात्र के अवसर पर यहां आना अत्यंत शुभ माना जाता है।
माता कामाख्या देवी यात्रा में कुल खर्च
मंदिर तक पहुंचने के लिए अनेक साधन उपलब्ध हैं। सबसे निकटतम एयरपोर्ट गुवाहाटी इंटरनेशनल एयरपोर्ट है, और निकटतम रेलवे स्टेशन गुवाहाटी रेलवे स्टेशन है। यहां उचित खाने और ठहरने की सुविधा है, और मंदिर के पास ही धर्मशालाएं भी हैं, जो 300 से 500 रुपये में विश्राम की सुविधा प्रदान करती हैं।
इस यात्रा का कुल खर्च लगभग 5 से 7000 आ सकता है।