भगवान शिव की महिमा: 12 ज्योतिर्लिंग की अनदेखी खोज

हिंदू धर्म में 12 ज्योतिर्लिंग शिव भक्तों के लिए सर्वोच्च आध्यात्मिक महत्व रखते हैं। ये 12 पवित्र स्थान जहां भगवान शिव ज्योति के रूप में विराजमान हैं, भारत के विभिन्न कोनों में फैले हुए हैं। महाशिवपुराण में यह वर्णित है की भगवान शिव आशुतोष हैं, जो अपने भक्तों के पवित्र प्रेम से जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। इन 12 ज्योतिर्लिंगों की यात्रा को कुंडलिनी जागरूकता और आत्मिक समर्थन की दिशा में एक अद्वितीय माध्यम माना जाता है। इस यात्रा के माध्यम से भक्त अपने जीवन को एक नए आध्यात्मिक स्तर पर ले जाने का प्रयास करते हैं और महादेव की कृपा को प्राप्त करते हैं।

12 ज्योतिर्लिंग तथा उनके स्थान:

1. श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग:

श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, भगवान शिव के पहले ज्योतिर्लिंग के रूप में, एक अद्वितीय और पवित्र स्थान है जहां भगवान शिव का प्रकटीकरण हुआ था। श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का मंदिर सोने से निर्मित है और इसकी शृंगारशैली आद्यात्मिक सौंदर्य का प्रतीक है। यह स्थान गुजरात के प्रभास क्षेत्र में स्थित है, जहां तीन पवित्र नदियाँ – हिरेन, कपिला, और सरस्वती – मिलती हैं, त्रिवेणी संगम के तट पर। इस पवित्र स्थान पर स्नान करने और श्री सोमनाथ के दर्शन करने से मानव अपने पापों से मुक्त होता है, इसे धार्मिक शास्त्रों में माना जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से कराया था, परंतु चंद्रमा उनकी सिर्फ एक पुत्री रोहिणी से प्रेम करते थे तथा अन्य को महत्व नहीं देते थे जिससे क्रोधित होकर  प्रजापति दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दिया की चंद्रमा अपनी चांदनी खो देंगा।                                 
इसके बाद चंद्रमा ने भगवान शिव की उपासना की और इस स्थान पर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया, तथा मान्यता है कि तभी से भगवान शिव इस स्थान में वास करते हैं।

2. श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग:

यह पवित्र ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के  कृष्णा जिले , नल्ला-माला  जंगलों के बीच तथा श्रीशैलम पहाड़ियों के मध्य एवं  पवित्र कृष्णा नदी के तट पर स्थित है। इसके सौम्य एवं अनुपम स्वरूप के कारण इसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है।

यहाँ भगवान शिव‌, शक्ति स्वरूप माता पार्वती के साथ विराजमान है। यह पवित्र 52 शक्तिपीठों में भी सम्मिलित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि जब भगवान शिव,  माता सती  के शव के साथ तीनों लोकों में विचरण कर रहे थे तब भगवान विष्णु ने माता के शरीर को शक्तिपीठों में विभक्त किया तथा माता सती के होंठ का ऊपरी हिस्सा मल्लिकार्जुन स्थान पर गिरा तभी से यह शक्तिपीठ के रूप में भी पूजा जाता हैं।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कहानी:            

मान्यता है कि भगवान शिव एवं पार्वती पुत्र कार्तिकेय और श्री गणेश अपने विवाह को लेकर आपस में कलह करते हैं । पश्चात वे भगवान शिव व  माता पार्वती के पास जाते हैं और यह बात बताते हैं। तब भगवान शिव कार्तिकेय,  श्री गणेश से कहते हैं कि जो आप दोनों में से पृथ्वी की संपूर्ण परिक्रमा करके वापस आ जाएगा वह ही प्रथम विवाह करेगा।  कार्तिकेय अपने मयूर तथा गणेश अपने मूषक पर सवार होते हैं।
श्री गणेश बड़ी चतुराई से माता पार्वती तथा भगवान शिव की परिक्रमा करते हैं एवं विजय घोषित किए जाते हैं। इसके बाद  श्री गणेश का विवाह विष्णु स्वरूप प्रजापति दक्ष की पुत्री रिद्धि एवं सिद्धि  से हो जाता है। एवं उन्हें दो पुत्रों की प्राप्त  होती है। कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करके आते हैं तथा श्री भगवान गणेश को विवाहित एवं अपने पुत्रों के साथ देखकर क्रोधित हो जाते हैं और मोक्ष पर्वत में जाकर रहने लगते हैं। तब माता पार्वती एवं भगवान शिव स्वयं इस स्थान पर आकर अपने रूठे हुए पुत्र को मनाने हैं , तभी से यह मल्लिकार्जुन के नाम से विख्यात हैं।

3. श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग:

उज्जैन के महाराजा महाकालेश्वर, मध्य प्रदेश के अत्यंत विशाल एवं भव्य मंदिर में अनादि काल से विराजमान है तथा यह सदियों से हिंदू आस्था का केंद्र रहे हैं। महाकालेश्वर मंदिर का परिषद् अत्यंत मनोहर एवं सुसज्जित है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर अनेकों आक्रमण किए गए एवं अनेकों वर्षों तक मुगलों तथा अंग्रेजों का शासन होने के बाद भी मंदिर के प्रति भक्तों की आस्था कभी क्षीण नहीं हुई। मुगल काल की आक्रांताओं से ज्योतिर्लिंग को बचाने के लिए इसे लगभग 500 वर्षों तक कुएं में रखा गया । पश्चात् मराठा शासक राणो जी ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया तथा राजा विक्रमादित्य ने भी मंदिर के निर्माण कार्य को आगे बढ़ाया। महाकालेश्वर की दिव्यता का वर्णन वाल्मीकि बाणभट्ट जैसे अनेक मनीषियों ने किया है।      

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई?   

कोटी रूद्र संहिता के अनुसार उज्जैयिनी नगरी में एक ब्राह्मण वेद प्रिय अपने चार पुत्रों के साथ शिव भक्ति में एवं पूजा कर्मकांड में लीन रहते थे। इस समय रत्नमाल पर्वत पर एक राक्षस दूषण रहता था जिसे ब्रह्मा द्वारा अमृत्व का वरदान प्राप्त था । इसी कारण वह सभी प्राणियों पर अत्याचार करता था। तब वेद प्रिया ने भगवान शिव से दूषण के अंत की प्रार्थना की और भगवान शिव प्रकट होकर दूषण का अंत किया तथा महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए। 

4. श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग:

मध्य प्रदेश की पवित्र नर्मदा नदी के तट पर एवं मांधाता पर्वत पर स्वयं महादेव ओंमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है। यहां पर नर्मदा तथा कावेरी नदी के संगम से ओम् आकर के टापू का निर्माण होता है,अतः इस कारण इसे ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।  ओंकारेश्वर का यह भव्य मंदिर 64 स्तंभों पर परमार कला की नक्काशी को दर्शाता है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग एक पंचमुखी ज्योतिर्लिंग है तथा माना जाता है यहां पर भगवान शिव तीनों लोकों के भ्रमण के पश्चात विश्राम हेतु आते हैं। अतः यहां प्रतिदिन सायंकाल में शिव की शयन आरती की जाती है। ओंकारेश्वर में शिव के दो ज्योतिर्लिंग विराजमान है जिसमें से एक ओंकारेश्वर तथा दूसरे ममलेश्वर हैं। ममलेश्वर के दर्शनों के बिना ओंकारेश्वर की यात्रा अधूरी मानी जाती हैं।

5. श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग:

महाराष्ट्र से 125 किलोमीटर की दूरी पर सहृयाद्री पर्वत पर तथा  भीमा नदी के सम्मुख भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग विराजमान है। इस मंदिर का निर्माण नगर शैली वास्तुकला तथा प्राचीन व नई संरचनाओं को दर्शाता है ।  मान्यता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा से भीमाशंकर का नाम जपता है उसके साथ पीढ़ियो के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा साथ ही मनुष्य के पांच पातक अर्थात् ब्रह्म हत्या, सुरापन, चोरी करना, परस्त्री गमन आदि पापों से भी मुक्त हो जाता हैं। 
                    
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई?  

श्री शिव महापुराण के अनुसार, रामायण काल में कुंभकरण व उसकी पत्नी कर्कटी का पुत्र भीमासुर था। वह भगवान विष्णु से अपने पिता कुंभकरण की हत्या का बदला लेना चाहता था। इस कारण वह सभी प्राणियों पर अत्याचार करना प्रारंभ कर देता है इसके पश्चात भगवान शिव प्रकट होकर भीमासुर का अंत करते हैं एवं भीमाशंकर के रूप में विराजमान हो जाते हैं।

6. श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंगः

भारत के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित, ऋषिकेश से केवल 125 किलोमीटर की दूरी पर, केदारनाथ धाम समुद्र तल से 22,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। केदारनाथ को चार धाम और पंच केदार यात्रा का भी हिस्सा कहा जाता है। यह सुंदर नर और नारायण पर्वत श्रृंगों के बीच स्थित , पवित्र मंदाकिनी नदी के किनारे बसा हुआ है। केदारनाथ की यात्रा, अप्रैल अर्थात चैत्र (अक्षय तृतीया के दिन से लेकर नवंबर, कार्तिक पूर्णिमा, दीपावली के दूसरे दिन तक, खुली रहती है।

सर्दियों में, जब क्षेत्र हिमाच्छादित होता है, बाबा केदार की मूर्ति को छह महीने के लिए उखीमठ लाया जाता है, और यहीं पर उनकी पूजा-अर्चना की जाती हैं।

7.श्री विश्वेश्वर / विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग:

विश्वनाथ अर्थात ब्रह्मांड के शासक, यह भगवान को शिव को समर्पित 12 ज्योतिर्लिंगों में सम्मिलित है जो कि अध्यात्म की नगरी वाराणसी के ललिता घाट पर स्थित है। यह मंदिर अत्यंत सुंदर हिंदू वास्तुकला एवं मकराना के दूधिया मार्बल, चुनार बलुआ पत्थर, जैसलमेर के मडाना स्टोन से बनाया गया है। यहां हजारों शिव भक्ति नित्य शिव आशीष हेतु आते हैं एवं मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के दर्शन मात्र से व्यक्ति पाप मुक्त हो जाता हैं।

कैसे हुई बाबा विश्वनाथ की उत्पत्ति?

पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि भगवान शिव माता पार्वती के आग्रह से काशी आते हैं। काशी नगरी भगवान शिव और माता पार्वती को अत्यंत रमणीय प्रतीत होती है जिसके बाद भी इसी नगरी में विश्वेश्वर स्वरूप में विराजमान हो जाते हैं। मान्यता यह भी है कि वाराणसी नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी है।          

बाबा विश्वनाथ मंदिर पर अनेकों आक्रमण तथा बर्बरता की गई। 1194 ई. में मोहम्मद गोरी ने, 1447 ई. में  जौनपुर के सुल्तान  मोहम्मद शाह, 1634 ई.  में शाहजहां व 1669 ई. में औरंगजेब सहित अनेकों मुस्लिम सुल्तानों ने मंदिर को ध्वस्त करने का प्रयास किया। पश्चात मालवा साम्राज्य कि महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने सन् 1735 ई. में विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया एवं तत्कालीन सिख साम्राज्य के महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर निर्माण के लिए 1000 किलोग्राम सोना दान किया था।

8. श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग:

यह झारखंड राज्य के देवघर नामक स्थान में स्थित अत्यंत प्राचीन शिव धाम व सिद्ध पीठ है जिसे ‘कामना लिंग’ भी कहा जाता है।  यहां पर स्थित मां पार्वती मंदिर को मुख्य मंदिर के साथ विशाल लाल पवित्र धागों से बांधा गया है जो अद्वितीय और श्रद्धेय  है एवं शिव और शक्ति की एकता का प्रतीक है । शिव पुराण में वर्णित  पवित्र बैद्यनाथ मंदिर आत्माओं की एकता दर्शाता है और इस प्रकार हिंदुओं के लिए विवाह के लिए उपयुक्त हैं।

 यहां प्रत्येक वर्ष देश- विदेश से लगभग  10 लाख भक्त आते हैं और अजगैबीनाथ , सुल्तानगंज से एकत्रित गंगा ( उत्तरवाहिनी गंगा ) का पवित्र जल भगवान को चढ़ाते हैं , यह देवघर और बैद्यनाथ से लगभग 108 किमी दूर है।

बैद्यनाथ में श्रावन के महीने में लाखों कांवरिये सुल्तानगंज से जल भरकर ‘बोल बम’ का जयकारा लगाते हुए नंगे पैर यात्रा करते हैं।

9. श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग:

नागेश्वर अर्थात् नागों के देवता भगवान शिव, का यह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका जिले में स्थित है।

महाशिवपुराण के अनुसार माना जाता है कि दारूका नाम की राक्षस कन्या ने अपनी कठोर तपस्या से माता पार्वती को प्रसन्न कर वरदान स्वरुप राक्षसों के लिए प्रतिबंधित दारूका वन में जाने की अनुमती मांगती है। अनुमति पाकर दारूका अन्य राक्षसों के साथ सामान्य प्राणियों पर अत्याचार करती है तथा सुप्रिया नाम की एक शिव भक्त को बंदी बना लेती है। इसके पश्चात, सुप्रिया भगवान शिव की तपस्या कर दारुका के अंत की विनती करती है। भगवान शिव सुप्रिया की प्रार्थना सुनकर उसकी रक्षा हेतु एक सर्प के बिल से प्रकट होते हैं एवं राक्षसों के अंत के बाद इस स्थान पर नागेश्वर स्वरूप में विराजमान हो जाते हैं।

10. श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग:

रामेश्वरम अर्थात रामनाथ स्वामी। भगवान शिव किया प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य के रामेश्वरम से 350 किलोमीटर की दूरी पर शंख आकार के एक द्वीप पर स्थित है। यह अत्यंत सुंदर स्थापत्य कला का भेजो नमूना है जो सैकड़ो विशाल खंभो से बना है। यह चार धामों में एवं वाराणसी के विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के समान ही माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार: प्रभु श्री राम ने लंका पर चढ़ाई से पूर्व रामेश्वरम में ही पार्थिव शिवलिंग की पूजा की थी तथा यहीं पर रामसेतु निर्मित हुआ था जिसके विशेष सागर में दिखाई देते हैं। रामनाथपुरम राजभवन में वह काला पत्थर आज भी मौजूद है जिसे भगवान शिव ने केवट को दान में दिया था।

11. श्री त्रयंबकेश्वर ज्योर्तिलिंग:

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रांत के नासिक जिले के एक प्राचीन गांव त्र्यंबक में स्थित है। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर सुंदर काले पत्थरों से निर्मित है एवं मंदिर की दीवारों पर सुंदर नक्काशी सभी को मोहित करती है। 

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई?

श्री शिव महापुराण के अनुसार, कहा जाता है कि प्राचीन समय में गौतम ऋषि ब्रह्मगिरि के पहाड़ियों में अपनी पत्नी अहिल्या के साथ तपस्या में लीन रहते थे एवं वहां पर रहने वाले सभी ऋषिगण उनसे ईष्याॆ करते थे। ईष्र्या वश उन ऋषि गणों ने महर्षि गौतम पर गौहत्या का दोष लगाया। गौहत्या से मुक्ति पाने के लिए ऋषि गणों ने उपाय स्वरूप गंगा नदी को ब्रह्मगिरी पर्वत पर लाने को कहा। तब गौतम ऋषि एवं माता अहिल्या ने शिव की तपस्या की‌ और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर गौतम ऋषि से वर मांगने के लिए कहा। वरदान स्वरुप गौतम ऋषि ने माता गंगा को पृथ्वी पर लाने का आग्रह किया। तब माता गंगा भगवान शिव की जटाओं से ब्रह्मगिरी पर्वत पर प्रकट होती है एवं गौतम ऋषि को दोष मुक्त कर देती हैं। और इसी स्थान पर भगवान शिव त्रयंबकेश्वर स्वरूप में विराजमान हो जाते हैं।

12. श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग:

घुश्मेश्वर अर्थात् करुणा के सागर, भगवान शिव। यह अत्यंत प्राचीन ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के दौलताबाद से 12 किलोमीटर दूर बेरुल गांव एवं छत्रपति संभाजी महाराज नगर के समीप स्थित है। इसे घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है एवं यह शाव्य परंपरा से संबंधित है।

कई साल पहले की बात है, एक ब्राह्मण जो सुधर्मा नामक थे, उनकी पत्नी का नाम सुधा था। वे बहुत धार्मिक और परमेश्वर भक्त थे, परंतु उनके पास कोई संतान नहीं थी। एक दिन, उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की और उनसे एक सुपुत्र की प्राप्ति का वर मांगा।

भगवान शिव ने उनकी तपस्या को देखकर उन्हें एक सुपुत्र के साथ आशीर्वाद दिया। इस आशीर्वाद के बाद, उनकी पत्नी सुधा ने एक सुन्दर और धार्मिक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम कुशमा रखा गया। कुशमा ने बड़ते हुए भगवान शिव के प्रति विशेष भक्ति बढ़ाई और हर दिन शिवलिंग की पूजा करने लगा। लेकिन, समय के साथ, सुधा के मन में ईर्ष्या की भावना उत्पन्न हो गई और उन्होंने अपने पुत्र कुशमा को नुकसान पहुंचाया, जिससे उसकी अच्छूती मृत्यु हो गई।

सुधा ने अपने किए का पछतावा करते हुए, भगवान शिव से क्षमा मांगने के लिए तपस्या की। भगवान ने उस पर कृपा दिखाई और उसे क्षमा कर दिया। सुधा ने भगवान की मार्गदर्शन से रोज़ाना पूजा जाने वाले शिवलिंग को एक पास के तालाब में डालने को कहा।

उसके उपदेश का पालन करते हुए, एक अद्भुत घटना हुई। उस तालाब में डाले गए लिंग ने रौशनी में बदल गया, जिसे भगवान शिव ने घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा और घोषणा की कि वह यहां सदैव विराजमान रहेंगे।उस दिन से, घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग एक पवित्र तीर्थ स्थान बन गया, जहां भक्त अपने पापों के क्षमा के लिए प्राय श्चित्त करते हैं और भगवान शिव से आशीर्वाद, शांति, और मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।

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