Spirituality

श्री वैष्णो माता मंदिर: भक्ति और आध्यात्मिकता का संगम

श्री वैष्णो देवी मंदिर हिंदू धर्म के आदिशक्ति मां दुर्गा को अपने पवित्र स्वरूप में दर्शाता है। यह प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर जम्मू-कश्मीर के कटरा से 14 किलोमीटर की दूरी पर त्रिकूट पर्वत की गुफा में स्थित है जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से 5200 फीट है।

इसे लगभग 700 वर्ष पहले हंसली के प्रतिष्ठित ब्राह्मण पुजारी पंडित श्रीधर ने स्थापित किया था। यह मंदिर मां दुर्गा के प्रसिद्ध 108 शक्ति पीठों में एक है। पुराण के अनुसार, देवी सती के मस्तक का एक भाग इसी जगह गिरा था। मंदिर के गर्भगृह में, देवी दुर्गा, महाकाली और महासरस्वती की दिव्य प्रतिमाएं पिंडी रूप में विराजमान हैं। हर साल, लाखों भक्त इस पवित्र स्थान पर माँ से आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं।

माता वैष्णो से जुड़ी पौराणिक कहानी:

हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार,  जगत में  धर्म के उत्थान के लिए शक्ति के सत, रज तथा तम से मा सरस्वती, महाकाली तथा मा दुर्गा एक दिव्या स्वरूप में प्रकट होती है। ‌ त्रेता युग में रत्नाकर नामक एक ब्राह्मण थे जो माँ शक्ति के बहुत बड़े अनुयाई थे और वह नित्य संतान प्राप्ति के लिए माँ से विनती किया करते थे। माँ शक्ति रत्नाकर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसके घर एक कन्या के स्वरूप में जन्म लेती है। रत्नाकर माता के रूप में जन्मी अपनी पुत्री का नाम वैष्णवी रखता है।

वैष्णवी नित्य पूजा और ध्यान में लगी रहती थीं। नव वर्ष की आयु में ही वह प्रभु श्री राम से भेंट करती हैं एवं प्रभु श्री राम को स्वामी रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या करती है। तब भगवान श्री राम, माता वैष्णवी से कहते हैं कि वह विवाहित है एवं उन्होंने एक विवाह का प्रण लिया है। माता वैष्णवी बार बार उनसे विवाह के लिए हठ करती है, फिर भगवान श्री राम उन्हें बताते हैं-  कि कलयुग में एक समय ऐसा आएगा जब धरती पर धर्म का नाश होगा और कली नामक राक्षस लोगों में ईष्र्या एवं अहंकार को जन्म देगा, तब में अपना दसवां व अंतिम कल्की अवतार लूंगा और कली राक्षस का वध करूँगा। मै जगत में धार की स्थापना करूँगा और आपको अपनी अर्धांगनी के रूप के स्वीकार करूँगा।

पश्चात माता वैष्णवी त्रिकूट पर्वत पर जाकर तपस्या में लीन हो जाती हैं। त्रिकूट पर्वत पर तपस्या में लीन माता वैष्णवी की असीम शक्तियों की चर्चा दूर-दूर तक फैलने लगती है, और गोरखनाथ नामक एक महायोगी को पता चलता हैं। गोरखनाथ, वैष्णवी के विषय में जानने के लिए अपने शिष्य भैरवनाथ को भेजता है। भैरवनाथ को माता की दैवीय शक्तियों एवं उनके सुंदरता से प्रभावित होकर उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखता है, जिसे वह अस्वीकार कर देती हैं। भैरवनाथ माता के तप में बार-बार बाधा डालता है। माता, भैरवनाथ से परेशान होकर त्रिकूट पर्वत की एक गुफा में छिप जाती हैं व हनुमान से भैरवनाथ को गुफा में प्रवेश करने से रोकने को कहती हैं। माता इस गुफा में नौ माह  तपस्या करती हैं। माता तप पूर्ण करने के पश्चात भैरवनाथ तथा हनुमान का को युद्ध करता देख क्रोधित हो जाती है। वे अपने विकराल महाकाली स्वरूप को धारण करती हैं तथा भैरवनाथ के सर को धड़ से विलक कर देती हैं। भैरवनाथ माता से क्षमा मांगता है एवं माता उस पर दया कर उसे जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्त कर देती हैं और उसे यह वरदान देती हैं की किसी भी व्यक्ति  की वैष्णो देवी यात्रा तब तक अधूरी मानी जाएगी जब तक हुआ है भैरव के दर्शन नहीं करेंगे।

माता वैष्णो देवी मंदिर की यात्रा :

कहा जाता है की मां वैष्णो की यात्रा करने का अवसर अत्यंत सौभाग्यशाली मनुष्य को ही प्राप्त होता है। माता के गुफा तक का  यह सफर 14 किलोमीटर की पैदल यात्रा के साथ संपन्न होता है।  इसे पैदल के साथ-साथ पालकी, पिट्ठू तथा खच्चर द्वारा तय किया जाता है। यह यात्रा कटरा के बाण गंगा नामक स्थान से प्रारंभ होती है। बाण गंगा से माता की गुफा की दूरी 12 किलोमीटर की है। बाण गंगा से कुछ दूर चलने के बाद यह मार्ग पुनः दो मार्गों विभाजित हो जाता है, अर्धकुमारी मार्ग (6 किमी) तथा हिमकोटी मार्ग( 5.5 किमी)।

अर्धकुमारी से यात्रा के मार्ग में हाथी माता मंदिर आता है जो की अत्यंत रमणीय एवं मोहक है।

वैष्णो देवी यात्रा के विभिन्न पड़ाव :

बाण गंगा:

पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि जब माता वैष्णवी हनुमान जी के साथ त्रिकूट पर्वत की चढ़ाई कर रही थी तब हनुमान जी को प्यास लगती है, वह माता से जल के प्रबंध के लिए आग्रह करते हैं। तब माता अपनी धनुष के बाण से जल की धारा प्रकट करती है जिससे हनुमान जी अपनी प्यास बुझाते हैं। जिस स्थान को हम आज बाण गंगा के नाम से जानते है। पुराणों के अनुसार ऐसे कहा जाता है की माता वैष्णवी ने इस जल में अपने कैस धोएं थे जिस कारण इसे बाल गंगा भी कहा जाता है।

चरण पादुका:

बाण गंगा से कुछ दूरी पर चरण पादुका स्थापित है। माना जाता है कि माता वैष्णवी ने इस स्थान पर थोड़ी देर के लिए विराम लिया था, जिससे उनके चरणों के निशान यहां पर बने।

अर्धकुमारी:

यह गुफा यात्रा के तीसरे चरण में आती है, जहां माता ने तपस्या की थी और भैरवनाथ से बचने के लिए यहां पर आवास किया था। उस गुफा में वे इस प्रकार रही थी जैसे की कोशिश जो मन के गर्भ में होता है। इस गुफा का आकार मां के गर्भ के समान है जिस कारण इसे गर्भ गुफा और अर्धकुमारी कहा जाता है।

हिमकोटी:

यह अर्धकुमारी से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर यात्रियों के ठहरने तथा खाने पीने की उचित व्यवस्था की गई है। यहां सभी यात्री रूक कर मोहक प्राकृतिक दृश्य, हरे- भरे पहाड़ तथा का अद्भुत नज़ारा देखते हैं।

सांझी छत:

यह मुख्य मंदिर तक पहुंचने का अंतिम पड़ाव है जो की वैष्णो देवी गुफा से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां यात्रियों की ठहरने के लिए उचित व्यवस्था की गई है। यहां की प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर यात्री अपनी थकान को भूल जाते हैं।

वैष्णो देवी भवन /गुफा:

14 किलोमीटर की लंबी यात्रा तय कर सभी भक्त माता के दर्शनों के लिए गुफा में प्रवेश करते हैं। गुफा में माता दुर्गा महाकाली तथा मां सरस्वती पिंडी के रूप में विराजमान। कहा जाता है माता के दर्शन उन्ही भक्तों को मिल पाता है जिन्हें जिसे माता का बुलावा आता है। ऐसा मानना है की श्री वैष्णो देवी के दर्शनों के पश्चात् व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। ‌

भैरव मंदिर:

वैष्णो देवी भवन के दर्शन के बाद, भक्तों को 2 किलोमीटर की चढ़ाई को पार करके भैरव मंदिर पहुंचना होता है। कहा जाता है की माता वैष्णवी के दर्शनों के पश्चात यदि भैरवनाथ के दर्शन नहीं किए जाते हैं तो यह यात्रा कभी पूर्ण नहीं होती। श्री भैरवनाथ का मंदिर त्रिकूट पर्वत की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित है।

माता वैष्णो की यात्रा के लिए आवश्यक पंजीकरण:

माता वैष्णो देवी की यात्रा को आयोजित करने से पहले, आपको आर एफ आई डी (रेडियो फ़्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन) टैग प्राप्त करना आवश्यक होता है। इस टैग के माध्यम से यात्री अपनी भौगोलिक स्थिति का पता लगा सकते हैं, जो कि यात्रा के दौरान महत्वपूर्ण होता है। आरएफआईडी टैग बस स्टैंड, तारा कोर्ट, त्रिकूट भवन और रेलवे स्टेशन पर उपलब्ध होता है।

मोबाइल नेटवर्क की जानकारी के अनुसार, यात्रा से पहले नए प्रीपेड सिम कार्ड की खरीद की जरूरत होती है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में अन्य राज्यों के सिम कार्ड काम नहीं करते।

माता वैष्णो यात्रा का सही समय:

माता वैष्णो की यात्रा का सबसे सही समय मार्च से जून का माना जाता है। इस दौरान यहां का तापमान लगभग 18 से 30 के बीच होता है जो की पैदल यात्रा के लिए अनुकूल माना जाता है। सर्दियों के मौसम में यहां जाना अत्यंत दुर्लभ है। सर्दियों में कड़ाके की ठंड के कारण बर्फबारी तथा तापमान माइनस में चला जाता है।हालांकि मंदिर वर्ष पर भक्तों के लिए खुला रहता है।

वैष्णो देवी यात्रा: खर्च और ठहरने की व्यवस्था

वैष्णो देवी की यात्रा का सही से आयोजन करने के लिए, यात्रीगण को अपने खर्च के लिए सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। इस यात्रा के दौरान ठहरने, आवागमन, और भोजन के लिए आपका कुल खर्च लगभग ₹8000 से ₹10000 तक हो सकता है। यहाँ होटलों में ठहरने के लिए विभिन्न विकल्प मौजूद हैं, और उनका किराया आमतौर पर ₹800 से ₹1200 के बीच होता है। साथ ही, हैकटरा, अर्धक्वारी, और सांझी छत पर भी ठहरने की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन इनकी बुकिंग आगे करवाना आवश्यक होता है। ध्यान दें कि यात्रा के अवधि के दौरान आपकी सभी आवश्यकताओं की ध्यान से देखभाल करना महत्वपूर्ण है, ताकि आपका यात्रा सुरक्षित और सुखद रहे।

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