अमरनाथ हिंदू धर्म में एक प्रमुख और प्राचीन तीर्थ स्थान है जो जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर से 234 किलोमीटर की दूरी पर हिमालय की गोद में स्थित है। यहां बाबा अमरनाथ की गुफा में गिरने वाली पानी की बूंद से एक प्राकृतिक ज्योतिर्लिंग का निर्माण होता है, जिसका नाम स्वयंभू हिमानी शिवलिंग है।
बाबा अमरनाथ की गुफा में बर्फानी पानी से निकलने वाली प्राकृतिक ज्योतिर्लिंग को देखकर श्रद्धालु भक्त बहुत ही आनंदित होते हैं। यहां का हिमानी शिवलिंग अद्वितीयता और सच्चाई का प्रतीक है, और यह धार्मिक मान्यता में भी बहुत उच्च है।
इसके साथ-साथ, अमरनाथ में स्थित हिम निर्मित पार्वती पीठ भी बहुत महत्वपूर्ण है, जो पवित्र 51 शक्तिपीठों में से एक है। पुराणों के अनुसार, यहां भगवती माता सती के कंठ का हिस्सा गिरा था, जिससे यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यहां की प्राकृतिक सौंदर्य, धार्मिक महत्व, और आत्मा को शांति प्रदान करने वाला वातावरण हर वर्ष लाखों यात्री को आकर्षित करता है। अमरनाथ यात्रा भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा में एक अद्वितीय स्थान के रूप में निर्मित हो गया है, जो भक्तों को भगवान शिव के पास ले जाने का अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से यह पूछा कि आप अपने गले में मुंडमाला क्यों धारण करते हैं? तब भगवान शिव ने बताया कि माता पार्वती का जब-जब पुनर्जन्म होता है तब तब वह एक मुण्ड इस माला में जोड़ते हैं।
पुनः माता पार्वती यह पूछती है कि हे! प्रभु, मुझे बार-बार जन्म लेकर कठोर तपस्या के पश्चात आप प्राप्त होते हैं परंतु आप अजर अमर है, इसका रहस्य बताएं। माता पार्वती के आग्रह को स्वीकार करके भगवान शिव उन्हें यह बताते हैं कि उन्हें अमृत का रहस्य ज्ञात है जिसके कारण वह अजर अमर है। इस रहस्य को बताने के लिए भगवान शिव एक वीरान स्थान चुनते हैं जो यह अमरनाथ गुफा थी।
गुफा में प्रवेश से पहले, वे पहलगाम के नंदी, चंदनवाड़ी के चंद्रमा, शेषनाग झील के किनारे का शेषनाग, मानुष पर्वत पर श्री गणेश, और पंचतरणी को पार करते हैं। इसके बाद, गुफा के अंधकार में, भगवान शिव ने अपने रहस्यमय अमृत का दान दिया, जिसके कारण वे अजर और अमर हैं।
लगभग 500 वर्ष पहले, बूटा मलिक नामक एक कश्मीरी मुस्लिम गडरिये ने अमरनाथ की इस गुफा की खोज की थी। ऐसा माना जाता है कि एक दिन बूटा मलिक अपनी भेड़-बकरी चरा रहा था, तभी भारी वर्षा प्रारंभ हो गई। वर्षा से बचने के लिए उसने एक चट्टान के नीचे छुप जाने का निर्णय किया। कुछ समय बाद, उसके पास एक साधु आया और उसने उसे अपनी कोयले की बोरी सौंपी।
बूटा मलिक वह बोरी लेकर अपने घर चला जाता है। घर पहुंच कर जब वह यह बोरी खोलता है तो वह हैरान हो जाता है क्योंकि बोरी में कोयले के स्थान पर सोने के सिक्के होते है। यह देखकर वह उसी गुफा के पास जाकर उस साधु की खोज में लग जाता है परंतु काफी देर तक ढूंढने के बाद भी वह साधु नहीं दिखाई पड़ते। कुछ समय बाद वह देखता है कि गुफा में बर्फ से निर्मित एक चमकदार शिवलिंग मौजूद है। इसकी जानकारी वह अनदेखे गाँववालों को सुनाता है और इस प्रकार बाबा अमरनाथ की गुफा की खोज होती हैं।
अमरनाथ धाम की यात्रा वार्षिक रूप से आयोजित होती है और यह साधारिता से आषाढ़ मास की पूर्णिमा से लेकर श्रावण मास की पूर्णिमा तक चलती है, जो आमतौर पर जून से सितंबर के आसपास होता है। इस यात्रा का प्रारंभ पहलगाम से होता है और यात्री चंदनवाड़ी, शेषनाग, पंचतरणी को पार करके बाबा बर्फानी तक पहुँचते हैं। पहलगाम से बाबा बर्फानी तक का पैदल मार्ग 32 किलोमीटर का है, जिसे पालकी, घोड़े, और हेलीकॉप्टर से भी तय किया जा सकता है। यात्रा का दूसरा मार्ग बालटाल गांव से बाबा बर्फानी तक है, जो 14 किलोमीटर लंबा है, परंतु यह रास्ता अत्यंत दुर्लभ होता है।
बाबा अमरनाथ यात्रा प्रारंभ करने से पहले मेडिकल सर्टिफिकेट और आरएफआईडी टैग की आवश्यकता होती है, जो कि श्रीनगर रेलवे स्टेशन या जम्मू तवी स्टेशन पर आसानी से उपलब्ध है।
अमरनाथ यात्रा के दौरान सरकार ने विभिन्न कैंपों में ठहरने और निशुल्क भोजन की सुविधा प्रदान की है। इन सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए यात्री से कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जाता है। एक व्यक्ति के यात्रा का न्यूनतम खर्च लगभग 5,000 से 6,000 रुपये आ सकता हैं। सरकार द्वारा आयोजित यात्रा के दौरान, रहने और खाने की व्यवस्था सरकार द्वारा निशुल्क प्रदान की जाती है। भगवती नगर में रुकने के लिए विशेष स्थान सुनिश्चित किया गया है, जिसके लिए 100 से 200 रुपये का शुल्क हो सकता है। अगर आप पहलगाम से शुरू करते हैं, तो यात्रा का कुल समय लगभग 8 दिन है, जबकि बालटाल से शुरू करने पर यह समय 4 से 5 दिन है।
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यात्रा ब्लॉग बहुत ही सुन्दर है