मीनाक्षी मंदिर, भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित है, और यह भगवान शिव और पार्वती को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण लगभग 2500 वर्ष पहले पांड्य वंश के राजा कुलशेखर ने किया था। इस महान मंदिर का निर्माण 1623 से 1655 के बीच हुआ था।
मदुरै का नाम अपनी बेहतरीन सूती साड़ियों, कांस्य और काठ वास्तुकला के लिए विख्यात है, लेकिन मीनाक्षी मंदिर उसकी अद्वितीय सुंदरता के लिए भी मशहूर है।
मीनाक्षी मंदिर का प्रमुख गौरव उसके वास्तुकलावा और स्थापत्य कला में है। मंदिर में बीस दरवाजे हैं, जिन्हें ‘गोपुरम’ कहा जाता है, और प्रत्येक गोपुरम का ऊचाई 40 फीट है। इन गोपुरमों पर बड़ी बारीकी से चित्रकला की गई है, जिससे मंदिर का आकर्षण बढ़ता है।
मंदिर का गर्भगृह लगभग 3500 वर्ष पुराना माना जाता है, और मंदिर का प्रांगण 45 एकड़ भूमि में स्थित है। इसकी लंबाई 254 मीटर और चौड़ाई 237 मीटर है।
मंदिर में 985 भव्य एवं अति बारीक द्रविड़ शिल्पकार को दर्शाते हुए स्तंभ है, जिन्हें अइराम कला मंडप भी कहा जाता है। इन संभोग का निर्माण नाथ मुदलियार ने कराया था। इस मंदिर में कुल 33000 मूर्तियां स्थापित है जो माता पार्वती व शिव के विवाह को दर्शाती हैं।
यह 165 फीट लंबा तथा 120 फीट चौड़ा स्वर्ण कमल वाला सरोवर है । इसे स्वर्ण पुष्कारिणी सरोवर भी कहते हैं। भक्तगण मंदिर में प्रवेश करने से पहले इस सरोवर की परिक्रमा करते हैं ।
पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि जब इंद्र को ब्रह्म हत्या का दोष लगा था तब उन्होंने इसी सरोवर में स्नान किया था।
देवी मीनाक्षी की कहानी:
पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि मदुरई के राजा मलयध्वज पांड्या और उनकी पत्नी निःसंतान थे तब उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान शिव तपस्या की, उनकी प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पुत्री प्राप्ति का वर दिया जिसके पश्चात उन्हें अत्यंत सुंदर एवं मीन अर्थात मछली के समान नेत्रों वाली कन्या रत्न की प्राप्ति हुई तभी से उनका नाम मीनाक्षी पड़ गया । जिसे वहाँ के लोग माता पार्वती का स्वरूप ही मानते हैं।
मीनाक्षी मंदिर का महाप्रसादाम:
मंदिर में मिलने वाला प्रसाद अत्यंत पवित्र माना जाता है और इसमें केले के पत्ते में इमली के चावल, चने, उड़द की दाल, दाल के वड़े, मुरुक्कु, मेवे, और बेसन के लड्डू शामिल हैं। मान्यता है कि इस प्रसाद को पाने वाला व्यक्ति भाग्यशाली होता है।
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