Blog

जगन्नाथ पुरी: भक्ति और साकारत्मकता का सर्वोत्तम संगम

जगन्नाथ, अर्थात ‘विश्व के स्वामी भगवान विष्णु,’ को समर्पित यह प्रसिद्ध मंदिर ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर, पुरी में स्थित है। यह चार धामों में भी सम्मिलित है एवं सनातन धर्म के साथ-साथ वैष्णव तथा बौद्ध धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस भव्य मंदिर में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र (बलदाउ) और बहन सुभद्रा के साथ सिंहासन पर विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण का हृदय आज भी धड़कता है। जगन्नाथ पुरी को ‘धरती के बैकुंठ’ तथा ‘यमनिका तीर्थ’ भी कहा जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ चार धामों की यात्रा पर निकलते हैं, हिमालय के बद्रीनाथ में स्नान करते हैं, द्वारिका में वस्त्र पहनते हैं, फिर जगन्नाथ पुरी में भोजन करते हैं, और अंत में रामेश्वरम धाम में विश्राम करते हैं।

श्री जगन्नाथ कैसे प्रकट हुए?

भगवान श्री जगन्नाथ के प्रकट होने के पीछे एक अद्भुत और पारंपरिक कथा है, जो पुराणों और स्थानीय लोककथाओं में मिलती है।

कथा के अनुसार, राजा इंद्रद्यूम नामक एक शासक थे, जिनकी पत्नी का नाम गुणीचा था। एक दिन, राजा को स्वप्न में भगवान श्रीकृष्ण का दिव्य रूप दिखाई दिया गया, जिसने उन्हें उड़ीसा के नीलाद्रि पर्वत पर जाकर एक विशेष प्राकट्य (साकार रूप में प्रकट होने) का यज्ञ करने की सलाह दी।

राजा इस सपने का अर्थ समझकर, भगवान की आज्ञा का पालन करते हुए नीलाद्रि पर्वत पर गए और यहां एक विशेष पूजा का आयोजन किया। यज्ञ के दौरान एक अद्वितीय घटना घटी, जिसमें एक लकड़ी के दारू से अचानक भगवान की मूर्ति उत्पन्न हुई। इस मूर्ति को तीन अलग-अलग अंगों में विभाजित किया गया और उन्हें पुनः एक समूह में जोड़कर मंदिर में स्थापित किया गया। यही मूर्ति बाद में जगन्नाथ, बलबद्र, और सुभद्रा के रूप में पहचानी गई।

इस रूपांतरण के बाद, राजा इंद्रद्यूम ने मंदिर में भगवान जगन्नाथ की पूजा-अर्चना की शुरुआत की, जो पुरी के जगन्नाथ मंदिर का आरंभ हुआ। इसके बाद से ही यह मंदिर एक प्रमुख हिन्दू तीर्थ स्थल बन गया है और लाखों भक्तों को अपनी शरण में आकर आत्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति का साधन करने का एक महत्वपूर्ण स्थान बन गया है।

श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर की शिल्प कला:

पुरी का यह दिव्य वक्र रेखीय मंदिर उत्कृष्ट उड़िया वास्तुकला व कलिंग शैली पर आधारित है। इस भव्य मंदिर का ढांचा 214 फीट ऊंचे पत्थर के चबूतरे पर सुशोभित है तथा यह मंदिर मेघनाथ पचेरी और कूर्म बेधा नामक दो दीवारों से गिरा है। मंदिर में मुख्यतः चार द्वार हैं जिन्हें क्रमश:  दक्षिणी अश्व द्वार,  उत्तरी हस्ती द्वारा, पूर्वी सिंह द्वारा पश्चिमी सिंह द्वार के नाम से जाना जाता है।

मंदिर के ऊपरी भाग में भगवान विष्णु का अष्टधातु से निर्मित सुदर्शन चक्र स्थित है जिसे नीला चक्र भी कहा जाता है। यह चक्र मंदिर में इस प्रकार सुशोभित है कि इस किसी भी दिशा से देखने पर आपको अपने सम्मुख ही प्रतीत होगा।

श्री जगन्नाथ रथ यात्रा:

भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथ यात्रा प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को आरंभ होती है तथा दशमी तिथि तक चलती है इस यात्रा में तीन रथ होते है, सबसे अग्रभाग में लाल ध्वजा पर श्री बलराम इसके पीछे पद्म ध्वज रथ पर माता सुभद्रा और सुदर्शन चक्र होता है तथा सबसे पीछे भाग में गरुड़ ध्वज पर नंदीघोष नाम के रथ पर श्री जगन्नाथ विराजित होते हैं।

श्री जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों मनाई जाती है:

पद्म पुराण के अनुसार माना जाता है कि एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर भ्रमण की इच्छा जताई तब भगवान जगन्नाथ और बलभद्र अपनी लाडली बहन सुभद्रा को रथ पर बैठकर नगर दिखाने के लिए निकल पड़े तथा इस दौरान वह अपनी मौसी गुणीचा के घर गए एवं 7 दिन तक ठहरे तभी से जगन्नाथ यात्रा की परंपरा प्रारंभ हो गई।

स्कंद पुराण में ऐसा वर्णित है कि जो व्यक्ति इस रथ यात्रा में भगवान श्री जगन्नाथ जी के नाम का भजन कीर्तन करता है तथा गुणीचा नगर तक जाता है वह व्यक्ति अत्यंत भाग्यशाली होता है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

श्री जगन्नाथ मंदिर का महाप्रसाद:

श्री जगन्नाथ मंदिर में महाप्रसाद प्रतिदिन आनंद बाजार की रसोई में बनाया जाता है जिसे भगवान जगन्नाथ का महाभोग भी कहते है । प्रसाद लकड़ी के  बर्तनों में तथा मिट्टी के चूल्हे पर तैयार किया जाता है। यहां प्रतिदिन लगभग 50 क्विंटल चावल तथा 20 क्विंटल सब्जियां 500 रसोइयों और लगभग 300 सहयोगियों द्वारा बनाया जाता है। यहां पर प्रतिदिन लगभग 20000 लोग महाप्रसाद पाते हैं। महाप्रसाद में चावल मिक्स दाल जीरा हींग अदरक चावल सब्जी होता है जिसमें नारियल,  लाई एवं मालपुआ का विशेष महत्व होता है।

इस के कई रोचक और अनोखे तथ्य हैं जो इसे विशेष बनाते हैं। पहला तथ्य है कि मंदिर के शीर्ष पर लगा ध्वज सदैव हवा की विपरीत दिशा में लहराता है। दूसरा तथ्य है कि मंदिर के शिखर पर लगा हुआ नीला चक्र हर दिशा से देखने पर सीधा एवं सम्मुख ही प्रतीत होता है। तीसरा तथ्य है कि प्रत्येक 12 वर्ष के पश्चात् भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और बलभद्र की मूर्तियां मंदिर में बदली जाती हैं और इस समय में पुरी की बिजली काट दी जाती है, साथ ही सीआरपीएफ के जवानों को सुरक्षा का कार्य सौंपा जाता है।

इसके अलावा, मंदिर के पुजारियों का विशेष वेशभूषा और धार्मिक अनुष्ठान का विविधता इसे और भी अद्वितीय बनाता है। चौथा तथ्य है कि मंदिर के सिंह द्वारा तक समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई पड़ती है, परंतु सिंह द्वारा प्रवेश के साथ ही यह ध्वनि बंद हो जाती है। पाँचवा तथ्य है कि जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर कभी भी कोई पक्षी नहीं बैठता। आखिरी तथ्य में यह बताया जाता है कि मंदिर के शिखर पर लगी ध्वज पताका प्रतिदिन बदली जाती है और इसका महत्व इस से जुड़ी एक पौराणिक कथा के साथ दिखाया जाता है। इन अनोखे तथ्यों ने श्री जगन्नाथ मंदिर को एक अद्वितीय स्थान बनाया है जो विश्वभर के श्रद्धालुओं के लिए प्राचीन और पौराणिक महत्व को धारण करता है।

WebXLo

View Comments

Recent Posts

AI Anchors Krish and Bhumi: Bringing Real-Time Agricultural News to India’s Farmers

On May 26, 2024, DD Kisan, a channel under India's national broadcaster Doordarshan, celebrated its…

5 months ago

Understanding Skin Tan, Precautions, and Treatment

With the arrival of summer, many of us eagerly welcome the warm embrace of the…

6 months ago

Exploring the Potential of Devika: India’s Groundbreaking AI Software Engineer

In a world driven by technological advancements, innovation knows no bounds. Enter Devika, a groundbreaking…

6 months ago

Iris: Revolutionizing Education with AI-Powered Teaching

In a groundbreaking move, KTCT High School in Thiruvananthapuram City, Kerala state, has introduced Iris,…

6 months ago

कामाख्या माता मंदिर : शक्ति और पवित्रता की अद्वितीय धारा

कामाख्या माता का यह प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर असम के गुवाहाटी शहर में नीलांचल पर्वत…

6 months ago

Paris Olympics Games 2024

After a century, Get ready for the Paris Summer Olympic 2024 because the Olympic torch…

7 months ago

This website uses cookies.